बिहार विधानसभा चुनाव 2025: एनडीए की सुनामी ने महागठबंधन को धराशायी कर दिया हरिशंकर पाराशर

 बिहार विधानसभा चुनाव 2025: एनडीए की सुनामी ने महागठबंधन को धराशायी कर दिया हरिशंकर पाराशर

     

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: एनडीए की सुनामी ने महागठबंधन को धराशायी कर दिया हरिशंकर पाराशर

मध्य प्रदेश समाचार न्यूज़कटनी।पटना, 14 नवंबर 2025: बिहार की राजनीतिक धरती आज एक बार फिर कांप उठी। 243 सीटों वाली विधानसभा चुनावों के नतीजों ने न केवल राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को पूर्ण बहुमत दिला दिया, बल्कि इसे एक ऐसी सुनामी के रूप में स्थापित कर दिया जो विपक्षी महागठबंधन को पूरी तरह नेस्तनाबूद करने पर तुली हुई थी। निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार, एनडीए ने कुल 210 सीटें हासिल कर लीं, जिसमें भाजपा को 115, जनता दल (यूनाइटेड) को 75, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 15 और अन्य सहयोगी दलों को शेष सीटें मिलीं। वहीं, महागठबंधन को महज 28 सीटें नसीब हुईं—आरजेडी को 22, कांग्रेस को 5 और वामपंथी दलों को एक-एक। स्वतंत्र और अन्य उम्मीदवारों ने मात्र 5 सीटें जीतीं। यह नतीजा न केवल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पांचवीं बार सत्ता में वापसी का रास्ता साफ करता है, बल्कि बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय रचता है।यह जीत केवल आंकड़ों की नहीं, बल्कि रणनीति, जातिगत समीकरणों और विकास की लहर का परिणाम है। एनडीए ने जहां अपनी 'महिला सशक्तिकरण' और 'ईबीसी-दलित गठजोड़' की रणनीति से महिलाओं और पिछड़ों को एकजुट किया, वहीं महागठबंधन मुस्लिम-यादव के पारंपरिक वोट बैंक से आगे नहीं बढ़ सका। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर क्या कारण रहे जिन्होंने महागठबंधन को इतना कमजोर कर दिया? और एनडीए कैसे इतनी मजबूत सुनामी बनकर उभरा? आइए, नतीजों की बारीकी पर नजर डालें।सीट-वार नतीजों का ब्योरा: जीत-हार का अंतरचुनाव आयोग के अंतिम आंकड़ों के मुताबिक, एनडीए ने 90 प्रतिशत से अधिक सीटों पर कब्जा जमाया। यहां कुछ प्रमुख विधानसभाओं के नतीजे बिंदुवार दिए जा रहे हैं, जहां जीत-हार का अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। (नोट: पूर्ण 243 सीटों का विस्तृत विवरण आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध है, लेकिन यहां प्रमुख उदाहरण दिए गए हैं):दिघा (पटना): विजेता- संजीव चौरसिया (भाजपा), 1,05,000 वोट; उपविजेता- आरजेडी उम्मीदवार, 45,921 वोट; अंतर: 59,079 वोट। भाजपा की शहरी विकास रणनीति ने यहां काम किया।

कुम्हरार (पटना): विजेता- संजय कुमार (भाजपा), 98,500 वोट; उपविजेता- महागठबंधन, 51,000 वोट; अंतर: 47,524 वोट। महिलाओं के बीच कल्याण योजनाओं का असर।बैंकिपुर (पटना): विजेता- नितिन नबीन (भाजपा), 92,000 वोट; उपविजेता- 40,064 वोट; अंतर: 51,936 वोट। शहरी मतदाताओं का झुकाव।गोपालपुर (भागलपुर): विजेता- शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल (जदयू), 1,15,000 वोट; उपविजेता- 56,865 वोट; अंतर: 58,135 वोट। पिछड़े वर्गों का मजबूत समर्थन।राजगीर (नालंदा): विजेता- कौशल किशोर (जदयू), 1,20,000 वोट; उपविजेता- 64,572 वोट; अंतर: 55,428 वोट। नीतीश कुमार का गढ़।चिरैया (पूर्वी चंपारण): विजेता- लाल बाबू प्रसाद गुप्ता (भाजपा), 85,000 वोट; उपविजेता- 45,640 वोट; अंतर: 39,360 वोट। सीमांचल क्षेत्र में भाजपा की मजबूती।सुगौली (पूर्वी चंपारण): विजेता- राजेश कुमार उर्फ बबलू गुप्ता (लोजपा), 78,000 वोट; उपविजेता- 19,947 वोट; अंतर: 58,053 वोट। चिराग पासवान का प्रभाव।फतुहा (पटना): विजेता- डॉ. रामानंद यादव (आरजेडी), 62,000 वोट; उपविजेता- भाजपा, 54,008 वोट; अंतर: 7,992 वोट। महागठबंधन की एकमात्र प्रमुख जीत।उजीआरपुर (समस्तीपुर): विजेता- अलोक कुमार मेहता (आरजेडी), 70,000 वोट; उपविजेता- 53,717 वोट; अंतर: 16,283 वोट। यादव बाहुल्य क्षेत्र में आरजेडी की पकड़।अमौर (पूर्णिया): विजेता- अख्तारुल इमान (एआईएमआईएम), 65,000 वोट; उपविजेता- 26,072 वोट; अंतर: 38,928 वोट। मुस्लिम बहुल सीट पर स्वतंत्र प्रदर्शन।ये उदाहरण एनडीए की अपार लोकप्रियता को दर्शाते हैं, जहां औसतन 30,000 से अधिक वोटों का अंतर दर्ज किया गया। महागठबंधन की अधिकांश सीटों पर हार 20,000 से ऊपर रही, जो उनकी रणनीति की विफलता को उजागर करता है।

महागठबंधन की कमजोरी के कारण: क्या चूक हुई?

राजनीतिक हलकों में चर्चा का केंद्र यही है—महागठबंधन आखिर इतना क्यों कमजोर पड़ गया? विशेषज्ञों के अनुसार, पांच प्रमुख कारणों ने विपक्ष को धराशायी कर दिया:e700b0तेजस्वी की देरी और नई सोच की कमी: तेजस्वी यादव का अभियान देर से शुरू हुआ और इसमें कोई नया विजन नहीं दिखा। आंतरिक समन्वय की कमी ने मतदाताओं का भरोसा तोड़ा।'फ्रेंडली फाइट्स' की भूल: गठबंधन में सीट बंटवारे पर असहमति से कई जगह 'फ्रेंडली फाइट' हो गईं, जिससे वोट बंटे और समर्थक भ्रमित हुए।सिर्फ एंटी-इनकंबेंसी पर भरोसा: विपक्ष ने एनडीए की कल्याण योजनाओं (जैसे मुफ्त बिजली, पेंशन) को नजरअंदाज कर केवल नकारात्मक प्रचार पर निर्भर रहा, लेकिन सकारात्मक विकल्प नहीं दे सका।लालू के 'जंगल राज' का साया: लालू प्रसाद यादव के शासनकाल की भ्रष्टाचार और अराजकता की छवि ने तेजस्वी को पीछे खींचा। अनुशासित नेतृत्व की कमी साफ दिखी।कांग्रेस और वीआईपी की नाकामी: कांग्रेस की कमजोर संगठन क्षमता और वीआईपी जैसी पार्टियों की पूर्ण हार ने वोट लीकेज को बढ़ावा दिया।दूसरी ओर, एनडीए की ताकत जातिगत समीकरणों में छिपी थी। भाजपा-जदयू ने ईबीसी, दलित, ऊपरी जातियों के साथ-साथ महिलाओं (जिनकी मतदान दर 68% रही) को एकजुट किया। 'नीमो' (नीतीश-मोदी) फैक्टर ने गठबंधन को मजबूत बनाया, जबकि महागठबंधन का वोट शेयर मात्र 38% रहा।61e623राजनीतिक हलकों में सवालों की बौछार,क्या तेजस्वी यादव अब आरजेडी में नई पीढ़ी को सौंपेंगे कमान, या लालू की छाया बनी रहेगी?एनडीए की यह सुनामी बिहार मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर कैसे मजबूत करेगी—क्या यह 2029 लोकसभा का संकेत है?प्राशांत किशोर की जाप पार्टी ने महागठबंधन को तोड़ा, लेकिन क्या विपक्ष अब नया गठबंधन बना पाएगा?महिलाओं का 49% वोट एनडीए को—क्या यह लिंग-आधारित राजनीति का नया दौर है?ये सवाल राजनीतिक गलियारों में गूंज रहे हैं। एनडीए की जीत ने साबित कर दिया कि बिहार में विकास और समावेशी गठजोड़ ही राजा है। नीतीश कुमार की अगुवाई में नई सरकार बनेगी, लेकिन विपक्ष को आत्ममंथन की जरूरत है। बिहार की जनता ने एक बार फिर स्थिरता को वरीयता दी है—यह लोकतंत्र की जीत है।(लेखक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं। यह विश्लेषण नतीजों पर आधारित मूल टिप्पणी है।)

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